
रिपोर्ट/ तान्या कसौधन
Farmers Protest: किसान और सरकार एक बार फिर आमने-सामने हैं. वे अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में हजारों किसान नोएडा की सड़कों पर है. वो दिल्ली की तरफ कूच पर अड़े हैं. प्रदर्शनकारी किसान दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. किसानों ने बैरिकेडिंग तोड़ दी। पुलिस का सख्त घेरा तोड़कर आगे बढ़ गए, हालांकि थोड़ी दूर पर फिर से किसानों को रोक लिया गया है. उधर, भीषण जाम से हाहाकार मचा है.वाहन चालक और आम लोग परेशान हैं. भीषण जाम में एंबुलेंस भी फंस गई.
किसानों को रोकने में जुटी पुलिस
जानकारी अनुसार, सोमवार को किसान नोएडा के रास्ते दिल्ली में घुसने पर अड़े हैं.किसानों का मकसद नोएडा से संसद भवन तक विरोध मार्च निकालने का है. संसद भवन ने शीतकालीन सत्र चल रहा है, ऐसे में किसानों को नोएडा-दिल्ली बॉर्डर पर ही रोकने की योजना है. किसानों के विरोध प्रदर्शन के चलते पुलिस ने दिल्ली-एनसीआर में कई स्थानों पर बैरिकेड लगाकर रूट डायवर्ट किया हुआ है.
क्या है किसानों की मांग?
दरअसल, उत्तर प्रदेश के किसानों की मांगें 1997 से 2008 के बीच क्षेत्र में सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण से संबंधित हैं. भारतीय किसान यूनियन (अखंड) के अध्यक्ष चौधरी महेश कसाना ने कहा, हम लंबे समय से विरोध कर रहे हैं लेकिन प्राधिकरण ने गरीब किसानों का शोषण करने के अलावा कुछ नहीं किया है. अब वे न्यू नोएडा की बात कर रहे हैं, वे फिर से हमारी जमीन जबरदस्ती हड़प लेंगे.
किसानों ने मांग की है कि आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों को विकसित करने के लिए ली गई भूमि का 10% उन परिवारों के लिए भूखंड के रूप में विकसित किया जाए जो इसके मूल मालिक थे. वे बढ़ी हुई मुद्रास्फीति के कारण मुआवजे की दर में 64.7% की वृद्धि भी चाहते हैं.
किसानों का तर्क है कि पुरानी अधिग्रहण दर मौजूदा बाजार दर से चार गुना कम है. अन्य मांगों में विस्थापित लोगों के बच्चों और परिवारों के लिए नए कानूनी लाभ लागू करना शामिल है. जैसे स्कूलों और कॉलेजों में 10% आरक्षण और मुफ्त बिजली और पानी. 2008 से ऐसी मांगों को लेकर कई विरोध प्रदर्शन किए गए.
आपको बता दे कि किसानों का प्रदर्शन 25 नवंबर को नोएडा ऑथिरिटी के बाहर शुरू हुआ था, लेकिन अब ये मुद्दा पुरे देश में फैलता जा रहा है.
उपराष्ट्रपति ने भी उठाये सवाल
साथ ही, उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने भी किसानों के लिए आवाज उठाई है. उन्होंने पूछा है कि किसानों से किए गए वादे पूरे क्यों नहीं किए गए और प्रदर्शनकारी किसानों के साथ कोई बातचीत क्यों नहीं की गई. उन्होंने कहा कि संकट में फंसे किसानों का आंदोलन का सहारा लेना देश की समग्र भलाई के लिए अच्छा संकेत नहीं है. सवाल उठता है कि किसान फिर से सड़कों पर क्यों उतरे हैं.