
रिपोर्ट/रितु चौहान
देश भर में चल रही बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुनाया जा रहा है कोर्ट ने कहा है कि वह पूरे देश में लागू होने वाले दिशानिर्देश बनाएगा.
15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य होगा
सुप्रीम कोर्ट ने “बुलडोजर एक्शन” पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि किसी भी संपत्ति को गिराने से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य होगा। कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि यह नोटिस पंजीकृत डाक द्वारा भेजा जाए और उसे संपत्ति पर चिपकाया भी जाए, ताकि संपत्ति के मालिक को विध्वंस के बारे में जानकारी मिल सके।
अदालत ने कहा कि विध्वंस की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए और निर्देश दिया कि बिना उचित कारण और प्रक्रिया के ऐसे विध्वंस अवैध माने जाएंगे। कोर्ट ने इन कार्रवाइयों को “बुलडोजर न्याय” का उदाहरण मानते हुए चिंता जताई और कहा कि यह केवल सार्वजनिक सुरक्षा के आधार पर ही होनी चाहिए। यदि निर्देशों का उल्लंघन होता है, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशानिर्देश:
1. 15 दिन की नोटिस अवधि: कोर्ट ने कहा कि किसी भी संपत्ति को गिराने से पहले संपत्ति के मालिक को 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य होगा. यह नोटिस पंजीकृत डाक से भेजा जाएगा और संपत्ति पर भी चिपकाया जाएगा ताकि समय रहते मालिक को इसकी सूचना मिल सके.
2. विस्तृत कारण का उल्लेख: नोटिस में यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि संपत्ति का कौन-सा हिस्सा अवैध है और किस कानूनी आधार पर विध्वंस की योजना बनाई जा रही है. इससे मालिक को यह समझने में मदद मिलेगी कि विध्वंस किस कारण से किया जा रहा है.
3. विध्वंस की वीडियोग्राफी: सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि विध्वंस की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होनी चाहिए. यह कदम इसलिए उठाया गया ताकि न्यायिक पारदर्शिता बनी रहे और किसी भी प्रकार के अवैध कार्य या भेदभाव से बचा जा सके.
4. अमान्यता के मामलों पर कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया: कोर्ट ने चेतावनी दी कि इन दिशानिर्देशों का पालन न करने पर संबंधित अधिकारियों पर अदालत की अवमानना का मामला दर्ज किया जा सकता है. अदालत ने यह भी कहा कि किसी भी संपत्ति पर “बुलडोजर एक्शन” केवल इस आधार पर नहीं हो सकता कि संपत्ति मालिक पर आरोप हैं या वह दोषी है.
5. सार्वजनिक सुरक्षा का आधार: कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी कार्रवाई केवल सार्वजनिक सुरक्षा के नाम पर ही होनी चाहिए. कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि कानून का पालन सभी नागरिकों के लिए समान होना चाहिए, न कि किसी विशेष समुदाय को लक्षित कर कार्रवाई की जाए.