दिल्ली

हिन्दू धर्म में सात फेरे के बिना नहीं मानी जाएगी शादी : सुप्रीम कोर्ट

विधि-विधान से किसी भी शादी को किये बिना हिन्दू परिवार में मान्यता नहीं दी जाती है। जहां दूल्हा-दुल्हन अग्नि के साथ फेरे जैसे रस्मों के अनुसार नहीं किया गया हो, उस विवाह को हिन्दू विवाह नहीं माना जाएगा।

हिन्दू विवाह पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा की हिन्दू विवाह में रस्मों के अनुसार सात फेरे लेना जरुरी है। विवाह का मतलब सिर्फ नाच-गाना, खाना-पीना, या दहेज़ का लेनदेन करना नहीं होता है। आपको बता दें की विधि-विधान से किसी भी शादी को किये बिना हिन्दू परिवार में मान्यता नहीं दी जाती है। जहां दूल्हा-दुल्हन अग्नि के साथ फेरे जैसे रस्मों के अनुसार नहीं किया गया हो, उस विवाह को हिन्दू विवाह नहीं माना जाएगा।

दअरसल जस्टिन बीवी नागरत्ना और आगस्टीन जार्ज मसीहा की पीठ ने कहा की हिन्दू विवाह एक पवित्र बंधन होता है, जिसे भारतीय समाज में बहुत महत्व दिया जाता है। पारंपरिक संस्कारों या सात फेरों जैसी रीतियों के बिना हुए विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 में विवाह का पंजीकरण विवाह के सबूत की सुविधा देता है, पर यह तब तक उसे वैधता नहीं देता है, जब तक विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार संपन्न नहीं हुआ होगा।

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-7 में उस पहलू का जिक्र है, जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है। इसी धारा में बताया गया है कि हिंदू विवाह के दौरान होने वाली रस्में या समारोह कौन-कौन से हैं। धारा-7 (1) में कहा गया है कि हिंदू विवाह किसी भी पक्ष के पारंपरिक संस्कारों और समारोहों के अनुसार संपन्न किया जा सकता है। धारा-7 (2) कहती है कि ऐसे संस्कारों और दूल्हे और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के सामने संयुक्त रूप से सात फेरे लेना शामिल है और सातवां कदम उठाने के साथ ही विवाह पूर्ण और बाध्यकारी हो जाता है. आसान शब्दों में कहें तो सातवां पूरा होने के साथ ही हिंदू विवाह पूरा हो जाता है।

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