
नई दिल्ली: स्वास्थ्य बीमा खरीदते समय मधुमेह और बीपी जैसी अन्य पुरानी मेडिकल हिस्ट्री को छिपाना उपभोक्ता के लिए महंगा पड़ सकता है। इस आधार पर बीमा कंपनियां हानि के लिए मुआवजा देने से इनकार कर सकती हैं और यहां तक कि बीमा बॉन्ड भी समाप्त कर सकती हैं। हाल में हुए पॉलिसी बाजार सर्वे के मुताबिक 25% स्वास्थ्य बीमा आवेदन पुरानी बीमारियों को छिपाने के आधार पर खारिज कर दिए जाते हैं। वहीं 50% क्लेम इंश्योरेंस उत्पाद की सीमित समझ की वजह से खारिज होते हैं। कंपनी ने यह 2023 में ही बता दिया था कि अप्रैल से सितंबर के बीच दो लाख क्लेम में से 30 हजार अस्वीकृत क्लेम के विश्लेषण के बाद किया है। जानकारों के मुताबिक हेल्थ इंश्योरेंस के उत्पादों को लेकर ग्राहकों की समझ सीमित होती है और कई बार वह ऐसी गलती कर बैठते हैं जिसका परिणाम उन्हें सहना पड़ता है।
ऐसी कई बीमारी होती है जिनके क्लेम में वेटिंग पीरियड होता है। यह वेटिंग पीरियड एक महीना, दो साल या चार साल तक का हो सकता है जो बीमारी पर निर्भर करता है। अगर पथरी की बीमारी का वेटिंग पीरियड दो साल का है तो इंश्योरेंस लेने के दो साल के बाद ही पथरी के इलाज का क्लेम कंपनी देगी।
सर्वे के मुताबिक 18 परसेंट से ज्यादा क्लेम इसलिए खारिज हुए क्योंकि वे कवरेज से बाहर के थे। कई बार इंश्योरेंस उत्पाद में डे केयर या ओपीडी कवरेज शामिल नहीं होता है, लेकिन उपभोक्ता उसका क्लेम भी कर देते हैं।पॉलिसी बाजार के मुताबिक अक्सर लोग हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय पहले से मौजूद बीमारी को छिपा लेते हैं। हेल्थ इंश्योरेंस खरीदते समय प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मेडिकल हिस्ट्री की पूरी जानकारी बीमा कंपनियों को देनी चाहिए। क्लेम फाइल करते समय सावधानीपूर्वक संपूर्ण जानकारी प्रदान करनी चाहिए ताकि क्लेम खारिज नहीं हो।