
रिपोर्ट / श्रेयशी दीप
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता से संबंधित कई नई याचिकाओं के दायर होने पर नाराजगी व्यक्त की। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “याचिकाएं दायर करने की एक सीमा होती है। बहुत सारे अंतरिम आवेदन दायर किए गए हैं। हम शायद इस पर विचार न कर पाएं।” अब इस मामले की सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह में होगी।
इससे पहले, 12 दिसंबर 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही को रोक दिया था, जिनमें वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक स्वरूप का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण की मांग की गई थी। इन घटनाओं के बाद, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा चौधरी और कांग्रेस पार्टी ने 1991 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग करते हुए नई याचिकाएं दायर कीं।
कैराना से सांसद इकरा चौधरी ने 14 फरवरी को मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर कानूनी कार्रवाई की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ओवैसी की इसी तरह की याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई थी।
1991 का पूजा स्थल अधिनियम किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बनाए रखने का प्रावधान करता है और इसके परिवर्तन पर रोक लगाता है। हालांकि, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इस अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया था।
हिंदू संगठन ‘अखिल भारतीय संत समिति’ ने इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में हस्तक्षेप करने की मांग की है, जबकि कांग्रेस पार्टी ने इन याचिकाओं का विरोध करते हुए उन्हें “धर्मनिरपेक्षता के स्थापित सिद्धांतों को कमजोर करने का दुर्भावनापूर्ण प्रयास” बताया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले की सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह में निर्धारित की है।